बच्चा गोद लिया हुआ हो तब? या पत्नी बाद में किसी से शादी कर ले तब? और अगर विधवा ने पति के भाई से शादी कर ली तब? क्या उन्हें फैमिली पेंशन मिल सकता है?

अगर किसी सरकारी कर्मचारी की सेवा में रहते मौत हो जाती है तो उसकी पत्नी पेंशन की हकदार होती है। इतना ही नहीं, बच्चे भी फैमिली पेंशन के हकदार होते हैं। लेकिन अगर बच्चा गोद लिया हुआ हो तब? या पत्नी बाद में किसी से शादी कर ले तब? और अगर विधवा ने पति के भाई से शादी कर ली तब? क्या उन्हें फैमिली पेंशन मिल सकता है? मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट और पंजाब ऐंड हरियाणा हाई कोर्ट के अलग-अलग मामलों में दिए फैसलों में इसका जवाब छिपा है। 

बच्चा गोद लिया हुआ हो तब? या पत्नी बाद में किसी से शादी कर ले तब? और अगर विधवा ने पति के भाई से शादी कर ली तब? क्या उन्हें फैमिली पेंशन मिल सकता है?

अगर किसी सरकारी कर्मचारी की सेवा में रहते मौत हो जाती है तो उसकी पत्नी पेंशन की हकदार होती है। इतना ही नहीं, बच्चे भी फैमिली पेंशन के हकदार होते हैं। लेकिन अगर बच्चा गोद लिया हुआ हो तब? या पत्नी बाद में किसी से शादी कर ले तब? और अगर विधवा ने पति के भाई से शादी कर ली तब? क्या उन्हें फैमिली पेंशन मिल सकता है? मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट और पंजाब ऐंड हरियाणा हाई कोर्ट के अलग-अलग मामलों में दिए फैसलों में इसका जवाब छिपा है। 

सबसे पहले बात सुप्रीम कोर्ट वाले फैसले की। सर्वोच्च अदालत ने मंगलवार को अपने एक फैसले में कहा कि किसी सरकारी कर्मचारी की पत्नी के गोद लिए बच्चों को फैमिली पेंशन नहीं मिल सकती। कोर्ट ने कहा कि सेन्ट्रल सिविल सर्विसेज (पेंशन) रूल्स के तहत ऐसे बच्चे फैमिली पेंशन के हकदार नहीं हैं।

जस्टिस के.एम. जोसेफ और बी. वी. नागरत्ना की बेंच ने कहा, 'फैमिली पेंशन की व्यवस्था इसलिए है कि मृत सरकारी कर्मचारी के आश्रितों संकट से निपटने में मदद मिल सके और उन्हें कुछ राहत मिल सके। इसलिए, 'परिवार' की परिभाषा की जद में उन्हें नहीं शामिल किया जा सकता तो जो सरकारी कर्मचारी की मौत के वक्त उसके आश्रित तक नहीं थे।'

यह मामला एक ऐसे व्यक्ति से जुड़ा था जिसे एक महिला ने अपने सरकारी कर्मचारी पति की मौत के दो साल बाद बेटे के रूप में गोद लिया था। महिला का अपने पति से कोई बच्चा नहीं था। जस्टिस नागरत्ना ने कहा, 'सेन्ट्रल सिविल सर्विसेज (पेंशन) रूल्स के रूल नंबर 54 (14) (b) के तहत फैमिली पेंशन के संदर्भ में 'अडॉप्शन' (गोद लेना) शब्द के दायरे में सिर्फ वही बच्चे आने चाहिए जिन्हें सरकारी कर्मचारी ने अपने जीतेजी गोद लिया हो। इसके दायरे में उन्हें नहीं लाया जा सकता जिन्हें सरकारी कर्मचारी की मौत के बाद गोद लिया गया हो।'

आसान शब्दों में कहें तो सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा कि अगर सरकारी कर्मचारी ने अपने जीवनकाल में ही किसी बच्चे को गोद लिया हो तो वह परिवार के दायरे में आएगा। लेकिन उसकी मौत के बाद अगर उसकी पत्नी किसी को गोद ले तो वह फैमिली पेंशन का हकदार नहीं होगा।

सेन्ट्रल सिविल सर्विसेज रूल्स के तहत अगर किसी सरकारी कर्मचारी की मौत होती है तो उसके परिवार को पेंशन मिलता है। परिवार के दायरे में ये आते हैं- पति या पत्नी, बच्चे, माता-पिता, दिव्यांग भाई-बहन

मृत कर्मचारी की विधवा या विधुर को तबतक फैमिली पेंशन मिलेगी जबतक उनकी मौत नहीं हो जाती या फिर जबतक वे दोबारा शादी न कर लें। अगर संतानहीन विधवा दूसरी शादी कर ले तब भी उसका फैमिली पेंशन जारी रहेगा बशर्ते कि बाकी अन्य सभी स्रोतों से उसकी आय न्यूनतम फैमिली पेंशन से कम हो।

इसी तरह बच्चों को फैमिली पेंशन उनके जन्म के क्रम में मिलेगा। छोटे बच्चे को तबतक पेंशन नहीं मिलेगी जबतक कि उससे बड़े भाई-बहन फैमिली पेंशन के लिए अयोग्य न हो जाएं। जुड़वा बच्चों के मामले में दोनों को बराबर-बराबर पेंशन मिलेगी। अविवाहित बेटे को फैमिली पेंशन तबतक मिलेगी जबतक उसकी उम्र 25 साल न हो जाए या जबतक उसकी शादी न हो जाती है या जबतक वह गुजारा के लिए कमाना शुरू नहीं करता। इनमें से जो भी पहले आ जाए, उसी वक्त फैमिली पेंशन पर हक खत्म हो जाएगा।

दूसरा मामला वायु सेना के एक कर्मचारी की विधवा से जुड़ा है, जिसने पति की मौत के बाद शादी कर ली लेकिन फैमिली पेंशन पर अपना दावा नहीं छोड़ा। महिला ने अपने दिवंगत पति के भाई से शादी की है। इस मामले में पंजाब ऐंड हरियाणा हाई कोर्ट ने साफ किया कि मिलिटरी के किसी पूर्व सिविलियन कर्मचारी की विधवा को तब भी फैमिली पेंशन का हक होगा जब उसने अपने दिवंगत पति के भाई से शादी की हो और वह 'अन्य आश्रितों की मदद करना जारी' रखी हुई हो। हाई कोर्ट ने यह भी साफ किया ये तब भी लागू होगा जब 'मिलिटरी सर्विस' की जगह 'गवर्नमेंट सर्विस' शब्द का इस्तेमाल हो।

जस्टिस एम. एस. रामचंद्र राव और सुखविंदर कौर की डिविजन बेंच ने ये फैसला सुनाया। दरअसल, पंजाब के फतेहपुर साहिब की रहने वाली सुखजीत कौर ने 2016 में दिए 'सेंट्रल ऐडमिनिस्ट्रेटिव ट्राइब्यूनल' (CAT) चंडीगढ़ के फैसले को चुनौती दी थी। CAT ने फैमिली पेंशन पर उसके दावे को खारिज कर दिया था।

महिला के पहले पति मोहिंदर सिंह जनवरी 1964 में इंडियन एयर फोर्स में भर्ती हुए थे लेकिन 21 नवंबर 1971 को मेडिकल ग्राउंड पर उनकी सेवा खत्म हो गई और उन्हें डिसेबिलिटी पेंशन दिया गया। बाद में उन्होंने एयर फोर्स को सिविलियन कर्मचारी के तौर पर फिर जॉइन किया। कौर और उनकी शादी 1974 में हुई लेकिन एक साल बाद ही 1975 में सेवा पर रहते हुए उनकी मौत हो गई। पति की मौत के बाद सुखजीत कौर को फैमिली पेंशन मिलने लगी। बाद में उन्होंने अपने दिवंगत पति के छोटे भाई से शादी कर ली। अप्रैल 1982 में केंद्र सरकार ने उनकी शादी को आधार बनाकर फैमिली पेंशन रोक दी। महिला को जब CAT से भी राहत नहीं मिली तब उसने पंजाब ऐंड हरियाणा हाई कोर्ट का रुख किया, जहां उन्हें बड़ी राहत मिली है। 

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