लॉ की डिग्री के बगैर भारत के 10वें CJI बन गए थे जस्टिस कैलाश नाथ वांचू

सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसे चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया भी रहे हैं जिनके पास लॉ की डिग्री भी नहीं थी। जस्टिस कैलाश नाथ वांचू भारत के 10वें सीजेआई थे। वो आईसीएस अफसर थे और एक घटनाक्रम की वजह से भारत के सीजेआई के पद पर पहुंच गए। उसके बाद वो इस पद पर साल भर के करीब काबिज रहे और कई ऐसे फैसले दिए जिन्हें आज भी याद किया जाता है। कानूनी मामलों में उनका लोहा इस पेशे के दिग्गज वकील और जज भी मानते थे।

लॉ की डिग्री के बगैर भारत के 10वें CJI बन गए थे जस्टिस कैलाश नाथ वांचू

सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसे चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया भी रहे हैं जिनके पास लॉ की डिग्री भी नहीं थी। जस्टिस कैलाश नाथ वांचू भारत के 10वें सीजेआई थे। वो आईसीएस अफसर थे और एक घटनाक्रम की वजह से भारत के सीजेआई के पद पर पहुंच गए। उसके बाद वो इस पद पर साल भर के करीब काबिज रहे और कई ऐसे फैसले दिए जिन्हें आज भी याद किया जाता है। कानूनी मामलों में उनका लोहा इस पेशे के दिग्गज वकील और जज भी मानते थे।

वांचू का जन्म 1903 में मप्र हुआ था। वो अपने परिवार के पहले जज थे। उन्होंने 1924 में इंडियन सिविल सर्विस का एग्जाम पास किया था। उसके बाद वो अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के लिए यूके चले गए। हालांकि वो एजुकेशन से एडवोकेट नहीं थे। लेकिन आईसीएस ट्रेनिंग के दौरान उन्हें क्रिमिनल लॉ के बारे में बताया गया, जिसे उन्होंने बखूबी आत्मसात किया। ट्रेनिंग के बाद वो लौटे तो उत्तर प्रदेश में कलेक्टर बने। बतौर कलेक्टर भी वो खासे चर्चित रहे।

जस्टिस वांचू कैसे सीजेआई बने, इसकी कहानी दिलचस्प है। 11 अप्रैल 1967 में तत्कालीन सीजेआई के सुब्बाराव ने राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दे दिया। उसके बाद वांचू देश के 10वें सीजेआई बने। वो 24 अप्रैल 1967 को देश के सीजेआई बने। वो 10 माह तक इस पद पर रहे। वो 24 फरवरी 1968 को रिटायर हो गए। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने 355 फैसले दिए।

जस्टिस वांचू ने इस दौरान 1286 बेंच गठित कीं। उनकी रुचि लेबर लॉ, कांस्टीट्यूशन लॉ और प्रापर्टी लॉ से जुड़े मामलों में रही। उनके रिटायर होने के बाद जस्टिस मोहम्मद हिदायतुल्लाह ने सुप्रीम कोर्ट की कमान बतौर सीजेआई संभाली। वांचू के कुछ फैसले देश के लिए नजीर बने। आईसी गोलकनाथ बनाम पंजाब सरकार के केस में उन्होंने लीक से हटकर बात कही।

सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि संसद संविधान के तीसरे पार्ट में संशोधन नहीं कर सकती। ये मूलभूत अधिकारों से जुड़ा था। जस्टिस वांचू ने कहा कि संसद संविधान के किसी भी पार्ट को बदलने के लिए स्वतंत्र है। साउदर्न रेलवे के जनरल मैनेजर बनाम रंगाचारी के केस में उन्होंने फिर लीक से हटकर बात कही। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि प्रमोशन में आरक्षण मिलना चाहिए। जस्टिस वांचू ने फैसले के खिलाफ अपनी बात रही। इनके अलावा भी कई फैसले ऐसे थे जिनमें वांचू ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के खिलाफ जाकर अपनी बात रखी। उन्हें तेज तर्रार और कानूनी मामलों का जानकार माना जाता था।